Thursday, 22 September 2016

तुंगनाथ यात्रा उत्तराखंड

दिन शनिवार दिनांक 17 सितम्बर तक हमारा कार्यक्रम चूरधार हिमाचल का तय था जो कि संदीप पवार जाट देवता की अगुवाई में होना था लेकिन जाट देवता की अस्वस्थता के चलते यह कार्यक्रम स्थगित हो गया लेकिन तब तक मेरा , नरेश  और विकी जो कि मेरे दूसरे घुमक्कडी मित्र है का पूरा मन यात्रा करने का बन चुका था फिर क्या था  मेरा एक और परम मित्र पवन सिकरवार को भी टोली में शामिल किया गया और यात्रा का स्थान सुनिश्चित करने का कार्य नरेश को सौंपा गया क्यूकि चूरधार का ट्रैक एक मुश्किल ट्रैक है खासकर उनके लिये जिन्हे ट्रैकिंग का ज्यादा अनुभव ना हो तो नरेश का अनुभव हमारे काम आया और उसने तुंगनाथ महादेव का प्रस्ताव हमारे बीच रखा यहा आपको यह भी बताता चलू कि नरेश अभी अभी चारधाम की यात्रा जून मे ही अपनी बुलेट से निपटाकर लौटा था जिसे उत्तराखंड का अच्छा खासा अनुभव हो चुका है तो हम सबने नरेश का यह प्रस्ताव एकमत होकर स्वीकार कर लिया फिर क्या था अब केवल अब तो निकलना ही था स्थान तय हुआ मथुरा मिलना और मेरी रिट्ज से जाना तय हुआ और समय रात्रि 9 बजे मथुरा से प्रस्थान हुआ।

यात्रा शुरू करने के साथ ही फेसबुक के माध्यम से हमारे घुमक्कड़ी मित्र भाई रूपेश कुमार शर्मा जी को हमारी यात्रा की जानकारी हो गयी तो जो कि ग्रेटर नोएडा में एक अच्छे होटल में मैनेजर है  उनका फ़ोन आ गया मेरे पास कि में रास्ते में ही हूं और मुझसे मिलकर ही जाना है में आपका इंतज़ार कर रहा हूं । परी चौक जाकर मैंने उनको फ़ोन लगाया और आगे का रास्ता उन्होंने बता दिया परी चौक के नजदीक ही उनका होटल है शर्मा जी से मिलकर बहुत अच्छा लगा और महसूस हुआ कि ज़रूरी नहीं कि रिश्ते का कोई नाम हो इंसानियत भी कोई चीज है ,पहली बार मिलने पर भी हमें ये महसूस नहीं हुआ कि ये हमारी पहली मुलाकात है।खैर बातों बातों में पता ही नहीं चला कि रात के 12 बज चुके है अब रूपेश जी से विदा लेने का समय था और अपनी यात्रा को आगे बढ़ाने का समय भी।



यहाँ से निकलकर हमारा अगला टारगेट ऋषिकेश था जहाँ पहुँचने के लिए हमारे पास पर्याप्त समय था क्योंकि ऋषिकेश से आगे बढ़ने के लिए हमने दिन का समय निश्चित किया अतः अब हमारे पास कम से कम 4 से 5 घंटे थे ऋषिकेश पहुँचने के लिए और एक बात गाड़ी में हम चार लोग थे और उनमें से तीन गाड़ी अच्छे से चला लेते है हालांकि पहाडों में गाड़ी चलाने का अनुभव हम में से किसी के भी पास नहीं था फिर भी अंधों में काना राजा वाली कहावत मेरे ऊपर लागू हुयी और मुझे ही पहाडों में गाड़ी चलाने की ज़िम्मेदारी मिली अतः मुझे सुबह तक आराम करने का आदेश दिया गया ताकि दिन में मैं अच्छे से गाड़ी चला सकूँ लेकिन ग्रुप में विक्की जैसा साथी हो फिर आप सोने का सोच भी नहीं सकते एक बहुत ही ज़िंदादिल और खुशमिज़ाज़ व्यक्तित्व का धनी ,हर समय आपको हँसाने का कार्य करता रहता है पूरा सफर आप हंसते हंसते आपके पेट में दर्द ।और पवन जोकि आगे की सीट पर बैठकर केवल आपको गाड़ी किस स्पीड में चलानी है यही निर्देश देता रहता है ओवरस्पीडिंग उसके होते हुए आप नहीं कर सकते खैर गाड़ी चलती रही और कब हम ऋषिकेश पहुँच गए पता भी नहीं चला सुबह पांच बजे हम ऋषिकेश पहुँच गए और वहाँ से गाड़ी मेरे हवाले कर दी गयी । अब हम शिवपुरी से आगे निकलकर व्यासी पहुँच गए सुबह का समय था हम सब ने वहाँ रुकने का फैसला किया और फ्रेश होकर एक एक चाय का का सेवन किया जिससे रात भर की थकान भी चली गयी और थोड़ा सा टहलने का मौका भी मिल गया




यहाँ से जैसे जैसे हम आगे बढते गए प्रकृति अपना सौन्दर्य और ज़ोर से बिखेरने लगी लग रहा था मानो पहाडों की वादियां हमारा हाथ फैलाये इंतज़ार कर रही हों और कह रही हों " वादियां मेरा दामन रास्ते मेरी वाहें जाओ मेरे सिवा तुम कहा जाओगे" खैर बहुत जल्दी ही हम देव प्रयाग संगम पे थे एक बहुत ही अधभुत दृश्य भागीरथी और अलखनंदा का सुन्दर मिलन और माँ गंगा का रूप यही से बनता है







कुछ समय यहाँ बिताने के पश्चात् हम फिर से अपनी मंजिल की ओर चल पड़े और रास्ते का लुत्फ़ उठाते उठाते हम श्रीनगर पहुँच गए । लागभग 10 बज चुके थे और पेट ने इशारा कर दिया था कि अब मेरा टाइम है मेरे बारे में सोचो खैर एक अच्छा सा स्थान देखकर मैंने गाड़ी साइड से लगा दी और बैठ गए सभी एक रेस्टोरेंट में ।आर्डर किया गया प्याज आलू के परांठे , दही और उसके बाद मैगी चूँकि भूख लगी थी सभी को तो पराठे जमकर खाये और स्वाद भी बहुत आया हालाँकि सफर करते समय मैं बहुत ही हल्का भोजन पसंद करता हूँ लेकिन फिर भी यारों के साथ कितना खा लिया पता भी न चला और पेट बहुत भर गया बाद में खयाल आया कि गाड़ी भी मुझे ही चलानी है खैर कोई बात नहीं पेट पर हाथ फिराया और निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर

यहाँ से हमारा कारवाँ बढ़ता चला और हम रुद्रप्रयाग पहुँच गए जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं नरेश कुछ दिन पहले ही चारों धाम की यात्रा करके गया था तो हमें रास्तों के बारे में किसी से पूछने की जरूरत नहीं पड़ी लेकिन एक परेशानी मुझे बहुत हो रही थी वो ये कि मैं रास्ते में पहाडों की खूबसूरती निहारना चाहता था और पवन को ये कतई मंजूर नहीं था उसकी निगाहें सिर्फ मेरे ऊपर टिकी थी कि कही गलती से भी मैं इधर उधर न देखूं । इसी उहा पोह में हम अगस्त्यमुनि पहुँच गए ।यहाँ मन्दाकिनी का प्रवाह हमें अपनी ओर बरबस  खींच रहा था तो हमने यहीं स्नान करने का निश्चय किया और कपडे उतारकर पहुँच गए नहाने लेकिन पानी का वेग इतना कि अंदर जाने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुयी इसीलिए एक किनारे बैठकर नहाना ही उचित समझा।



अब हमारा उद्देश्य बिना रुके चोपता पहुँचने का था मगर वादियों की खूबसूरती हमें ऐसा करने से बार बार रोक रही थी और ऊपर से विक्की का फोटो प्रेम । खैर रुकते रुकाते फोटो खींचते हुये हम उखीमठ पहुँच गये । मंजिल बहुत करीब थी तो सोचा थोड़ा सा अलपाहर कर लिया जाय जैसा कि नरेश ने बताया मैग्गी यहाँ का नेशनल फ़ूड है तो उसी को खाना उचित समझा और एक एक चाय । कुछ खूबसरत वादियों के दृश्य प्रस्तुत है।





उखीमठ से चोपता तक का रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है जिसमे चलना एक बहुत ही सुखद अहसास है हाँ कही कही लैंड स्लाइड की वजह से रास्ते भी टूटे हुए थे कही रास्तो पर पत्थर भी थे लेकिन घुमक्कड़ी में कुछ कठिनाई और रोमांच न हो तो घुमक्कड़ी का मज़ा नहीं आता ।खैर वो घडी भी आ गयी जिसके लिए हम पिछले 18 घंटो से निरंतर चल रहे थे मतलब हम चोपता पहुँच गये। हाँ एक बात और यहाँ पहुँचने से पहले रास्ते में गुलमर्ग के रास्ते का अहसास आपको ज़रूर होगा अगर आप गुलमर्ग की सैर कर चुके है तो।


4 बज चुके थे अब गाड़ी पार्क करने के बाद हमने थोड़ी सी जानकारी जुटाई ऊपर के बारे में । वैसे हमारे ग्रुप मेंबर्स की तरफ से हमें ज्यादातर जानकारी दी जा चुकी थी ।अब हमारा लख्य तुंगनाथ मंदिर पहुंचने का था जिसे हम दिन छिपने से पहले पूरा करना चाहते थे क्योंकि ये 3.5 किमी का ट्रैक था तो हम पहुँच भी सकते थे लेकिन कहने को ये 3.5 किमी थे मगर 35 किमी से कम न थे एक तो सीधी चढ़ाई और ऊपर से ऑक्सीजन की भारी कमी उस पर भी सुन्दर सुन्दर बुग्याल (घास के बड़े बड़े मैदान) थोड़ा सा चलते ही सांस फूलने लग जाती थी।रास्ता बहुत बड़ा लगने लगा मगर साथी खुश मिजाज हों तो फिर कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है ।हम हँसते मज़े करते हुए धीरे धीरे मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे । हाँ एक बात ये  भी थी कि हमें केवल तुंगनाथ पहुँचना था और रात्रि विश्राम वहीँ करना था तो कोई जल्दबाजी भी नहीं थी हाँ मौसम का जरूर डर था। कहते है पहाडों में बारिश का कोई भरोसा नहीं होता और हुआ भी ऐसा बारिश आ भी गयी लेकिन हमारी खुशकिस्मती ये कि जब तक हम देवलोक होटल के कमरे में रजाई का आनंद ले रहे थे।












तुंगनाथ पहुंचते पहुंचते अँधेरा हो चुका था वारिश भी शुरू हो चुकी थी और सर्दी भी अपना रूप दिखा रही थी । देवलोक होटल में पहुंचते ही नरेश ने खाना आर्डर कर दिया यहाँ के केअर टेकर भाई सुजान सिंह राणा बहुत ही मेहनती और नेकदिल इंसान । अपने काम को बड़ी लगन के साथ करने में जुट गए लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुयी रजाई से बाहर निकलने की एक तो थकान और ऊपर से ठण्ड । मगर खाना तैयार होते ही नरेश ज़िद करने लगा भैया खाना खा लो चाहे थोड़ा सा ही ।ऊपर से विक्की भाई की मसखरी तो मैंने हिम्मत दिखायी और रजाई से बाहर आया फिर क्या था ठण्ड मेरे ऊपर हावी हो गयी और मैं ज़ोर ज़ोर से कांपने लगा । शुक्र है चूल्हा जल रहा था तो हाथ सेंके और कुछ खाना खाकर भी गर्मी आयी ।खैर जल्दी से खाना निपटाकर हम रजाई में घुस गए। और साथ भी ये निश्चित किया गया कि सुबह पहले चंद्रशिला जाया जाएगा उसके बाद तुंगनाथ जी के दर्शन किये जायेंगे क्योंकि सुबह सुबह ही चंद्रशिला से अच्छा नजारा लिया जा सकता है अगर बादल आ गए तो फिर वहां जाने का कोई फायदा नहीं। सुबह हुयी हम सबने हाथ मुंह धोये और फ्रेश हुए लेकिन सुबह का नजारा इतना दर्शनीय था दोस्तों जिसे शब्दो में बयां नहीं किया जा सकता और ना ही किसी तस्वीर में कैद किया जा सकता है एक स्वर्णिम दृश्य दिखाई दे रहा था और सामने ही केदार नाथ,गंगोत्री, यमुनोत्री और चौखम्बा पहाड़ियों के दृश्य एक अदभुत नजारा और ऊपर से तुंगनाथ जी महादेव मंदिर। यहाँ पर हमारी मुलाकात एक और घुमक्कड़ी मित्र से हुयी जिनका नाम है अंशुमान मिश्र एक बड़े घुमक्कड़ जोकि झारखण्ड में एक बड़े अधिकारी पिताजी भी बी ऐच यू में प्रोफेसर और माता जी भी सरकारी विभाग में । मिश्रा जी पूरा उत्तराखंड निपटाने निकले थे और उन्होंने ऐसा किया भी ।अगर कोई इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता यही सन्देश हमें मिश्रा जी से मिला ।








अब हम पूरी तरह से तैयार थे चंद्रशिला की ओर रुख करने के लिए तुंगनाथ से 1.5 किमी की ऊंचाई पर और समुद्र तल से लगभग 14000 फुट की ऊंचाई पर प्रकृति का एक नायाब तोहफा बहुत ही खूबसूरत स्थान जिसके ऊपर कोई भी चोटी नहीं । खैर हमने शुरुआत की और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे चूँकि कोई रास्ता बना हुआ नहीं है ऊपर चढ़ने के लिए इसलिए बड़ी सावधानी से हम आगे बढ़ रहे थे सुबह सुबह का समय था और थकान भी नहीं थी इसीलिए चढने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी दिक्कत थी तो सिर्फ सांस फूलने की ।रास्ते में पवन को सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पढ़ा और हो भी क्यों ना 115 किग्रा वजन वाला इंसान तो दिक्कत तो होनी ही थी मगर हौसले का बुलंद । रास्ता बहुत ही पेचीदा होता जा रहा था कही कही फिसलन भरी घास तो कही पत्थर लेकिन हौसले अगर बुलंद हो तो कोई भी मुश्किल आसान हो जाती है और ऊपर से चंद्रशिला पे लहराता तिरंगा ।हमारा जोश तिरंगे को देखकर सातवें आसमान पे था उसे देखकर हमारे अंदर का सैनिक जाग उठा मनो हमें दुश्मन पर चढाई करनी हो।और ऊपर से उरी हमले का दर्द । आखिरकार वो पल आ ही गया जिसके लिए हम घर से निकले थे ।हम चंद्रशिला टॉप पर पहुँच चुके थे मित्रो यकीन मानिए इतना सुन्दर और भव्य नजारा जिसके लिए मेरे पास शब्द नहीं है।इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि लिखते समय ही मेरा रोम रोम खड़ा हो गया है तो वहाँ पहुंचकर हमारा क्या हाल हुआ होगा सारी थकान कहा काफूर हो गयी पता ही नहीं चला। लग रहा था मानो प्रकृति ने हमें अपनी गोद में बिठा लिया हो।बादल तो हमसे बहुत नीचे रह गए और सामने वो दृश्य जिसे हर सैलानी देखना चाहता है चौखंभा ,केदार घाटी ,बद्रीनाथ,गंगोत्री,यमुनोत्री घाटी का सुन्दर दृश्य ।जिसके लिए हम सुबह जल्दी निकले थे वो उद्देश्य पूरा हो गया। इसके बाद तो हमारे फ़ोन शुरू हो गए इस अद्वितीय सुंदरता को कैद करने के लिये हाथ में तिरंगा लिए भारत माता की जय के उदघोष से वादियां गूँज उठी।और जब तक हम चारों के फ़ोन की बैटरी नहीं बोल गयी हम फोटो खींचते गए।और काफी वक़्त हमने चंद्रशिला पे ही बिताया।या यूँ कहे हम उस पल को जीना चाहते थे जितना ज्यादा हो सके।क्योंकि बहुत जल्दी ही बादल छाने लगे और हलकी हलकी बारिश भी होने लगी।अब हम पूरी तरह से बेफिक्रे हो गए थे क्योंकि अब नीचे जाकर हमें मंदिर में तुंगनाथ जी के दर्शन करने थे और फिर वापसी।




















अब यहाँ से हम वापस तुंगनाथ आये यहाँ आकर हमने मंदिर में बहुत ही फुर्सत में पूजा की पुजारी जी ने हमें मंदिर का इतिहास बताया उन्होंने कहा कि यह पंच केदार में से तृतीय केदार है ।पञ्च केदारों में भगवान शिव के शरीर के अलग अलग हिस्सों की पूजा की जाती है। तुंगनाथ में भागवान की छाती एवं भुजाओं की पूजा की जाती है।यह मंदिर 5000 वर्ष पुराना है। प्राचीन काल में पांडवों ने फिर बाद में आदिशंकराचार्य ने इस मंदिर की स्थापना की।ऐसी मान्यता है।पुजारी को हमने धन्यबाद दिया और साथ ही मथुरा आने का निमंत्रण और आ गए वापस देवलोक होटल में।