दूसरा दिन 31 दिसम्बर 2016- जैसा कि यात्रा के भाग एक में, मैं बता ही चुका हूँ कि यात्रा की शुरुआत बाबा रामदेवरा के दर्शन से हो चुकी थी और दूसरे दिन की शुरुआत भी । यहाँ से जल्दी दर्शन करने के बाद हम फिर से आगे निकल लिये यहाँ से 10 कि.मी. आगे ही पोखरन है वहा पहुंचकर हमने एक पैट्रोल पम्प पे गाडी मे डीजल भरवाया और हाथ मुह धोकर गाडी को साइड से लगाकर सुबह का नाश्ता लिया । नाश्ता क्या था विक्की भैया भाभी के हाथ की मीठी पूडी बनवाकर लाये थे, रास्ते में एक जगह छोंकरवाडा नाम की जगह है जहाँ अचार बहुत अच्छा मिलता है वहाँ से हम अचार साथ लेकर आये थे फिर क्या था भूख तो लग ही रही थी खींच दी 8-10 पूडी ।बहुत ही स्वादिस्ट भोजन था । फिर एक चाय पीकर निकल लिये सफर पे ।वैसे हमारा विचार सीधा जैसलमेर पहुंचने का था लेकिन जैसलमेर से 40या 45 कि.मी.. पहले से विचार बदल गया और गूगल बाबा को कुलधरा गाव का इशारा कर दिया अब हमारा विचार ठेट राजस्थान के दर्शन करने का था और वो हाइवे से सम्भव नही था अतः अब हमने एसा रास्ता चुना जो वाकई हमे राजस्थान का दर्शन करवाये ।और हमने अपनी गाडी घुमा दी एक सुनसान रास्ते पे जो वाकई बहुत खूबसूरत था।यहां से हमने राजस्थान की प्राकृतिक सुंदरता का भरपूर लुत्फ़ उठाना शुरु किया।
समय बीतता गया और नये नये आयाम यात्रा में जुडते गये चाहे वो भेड और बकरियो का झुंड हो या रेगिस्तान का जहाज ऊंट हो ।बहुत ही मनमोहक रास्ता था।
यहाँ एक शौक और पूरा हुआ बेरी के बेर खाने का बहुत ही मीठे और पके हुये बेर गाडी रोककर जब तक बेर खाये जबतक कि मन नही भर गया ।
रास्ता एसा था कि मीलो तक कोई दिखायी ना दे ।घंटो चलने के बाद एक गांव दिखयी दिया तो सोचा एक फोटो यहाँ भी ले ली जाय।
थोडा आगे और चले तो पवनचक्की दिखायी दी। राजस्थान में ऊर्जा का एक बहुत बडा विकल्प ।
एसे ही हसते गाते कब कुलधरा गांव पहुंच गये पता ही नही चला खैर आज के दिन का हमारा पहला स्थल आ चुका था जिसके लिये हम सुबह से लगातार चल रहे थे।
कुलधरा गांव एक नजर में- कुलधरा गांव जिसे भूतहा गांव भी कहा जाताहैजैसलमेर से करीब 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित है । कहते हैं सन 1291 के आसपास रईस और मेहनती पालीवाल ब्राह्मणों ने 600 घरों वाले इस गांव को बसाया था। यह भी माना जाता है कि कुलधरा के आसपास 84 गांव थे और इन सभी में पालीवाल ब्राह्मण ही रहा करते थे।
लेकिन ऐसा क्या हुआ जो हंसते-खेलते 84 गांव के लोग अचानक बस एक ही रात में अपना घर, मकान, खेती, सब कुछ छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो गए? इसी सवाल से जुड़ी है कुलधरा की रहस्यमय दास्तां जिसका संबंध कथित तौर पर श्राप और बुरी आत्माओं से है।
खुशहाल जीवन जीने वाले पालीवाल ब्राह्मणों पर वहां के दीवान सालम सिंह की बुरी नजर पड़ गई। सालम सिंह को एक ब्राह्मण लड़की पसंद आ गई और वह हर संभव कोशिश कर उसे पाने की कोशिश करने लगा।
समय बीतता गया और नये नये आयाम यात्रा में जुडते गये चाहे वो भेड और बकरियो का झुंड हो या रेगिस्तान का जहाज ऊंट हो ।बहुत ही मनमोहक रास्ता था।
यहाँ एक शौक और पूरा हुआ बेरी के बेर खाने का बहुत ही मीठे और पके हुये बेर गाडी रोककर जब तक बेर खाये जबतक कि मन नही भर गया ।
रास्ता एसा था कि मीलो तक कोई दिखायी ना दे ।घंटो चलने के बाद एक गांव दिखयी दिया तो सोचा एक फोटो यहाँ भी ले ली जाय।
थोडा आगे और चले तो पवनचक्की दिखायी दी। राजस्थान में ऊर्जा का एक बहुत बडा विकल्प ।
एसे ही हसते गाते कब कुलधरा गांव पहुंच गये पता ही नही चला खैर आज के दिन का हमारा पहला स्थल आ चुका था जिसके लिये हम सुबह से लगातार चल रहे थे।
कुलधरा गांव एक नजर में- कुलधरा गांव जिसे भूतहा गांव भी कहा जाताहैजैसलमेर से करीब 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित है । कहते हैं सन 1291 के आसपास रईस और मेहनती पालीवाल ब्राह्मणों ने 600 घरों वाले इस गांव को बसाया था। यह भी माना जाता है कि कुलधरा के आसपास 84 गांव थे और इन सभी में पालीवाल ब्राह्मण ही रहा करते थे।
लेकिन ऐसा क्या हुआ जो हंसते-खेलते 84 गांव के लोग अचानक बस एक ही रात में अपना घर, मकान, खेती, सब कुछ छोड़कर जाने के लिए मजबूर हो गए? इसी सवाल से जुड़ी है कुलधरा की रहस्यमय दास्तां जिसका संबंध कथित तौर पर श्राप और बुरी आत्माओं से है।
खुशहाल जीवन जीने वाले पालीवाल ब्राह्मणों पर वहां के दीवान सालम सिंह की बुरी नजर पड़ गई। सालम सिंह को एक ब्राह्मण लड़की पसंद आ गई और वह हर संभव कोशिश कर उसे पाने की कोशिश करने लगा।
आपका यह यात्रा वृत्तांत रोम रोम पुलकित कर देता है । तस्विर तो बहुत ही मनमोहक है ।
ReplyDeleteअगली भाग की प्रतिक्षा मे बैठा हूँ ।
बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने
ReplyDeletehausalaa badhane ke liye bahut bahut dhanybaad bhai jii
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